" महाभारत सा युद्ध न हो, न हो अन्याय की कोई बात
चलो हम हो लें उसके साथ, करे जो कृष्णा के जैसी बात
कर्म है गीता का उपदेश, महाभारत है शांति सन्देश |"
अयोध्यावासी स्वर्गीय गीतकार एवं कलाकार पंडित किरण मिश्रा जी की जीवन यात्रा, साहित्यिक, भजन एवम फिल्म - सीरियल गीत संग्रह को समर्पित।
स्कूल से लौटते ही जल्दी-जल्दी अपना स्कूल का काम निपटाकर, छोटे भाइयों को अपना असिस्टेंट बनाकर, मोहल्ले के बच्चों को लेकर निकल पड़ते और फिर फिल्म बनाने और दिखाने में जुट जाते। घरवाले बेटे को 'किरन' कहकर पुकारते थे। 5 जुलाई 1953 को पिता पंडित दिनेश मिश्र और माता श्रीमती शोभा देवी की गोद में जन्मे किरन द्वारा फिल्म बनाने और दिखाने का काम उसी उम्र में कर लिया गया था, जब वे स्कूल में पढ़ते थे। इस काम के लिए न तो पैसा था, न ही तकनीकी और न ही कलाकारों की फौज। बस कुछ छोटी-छोटी, टूटी-फूटी मशीनों को जोड़कर, रेडियो आदि का प्रयोग करके, कुछ विद्युत उपकरणों की सहायता से कागज पर चित्रों को संकलित करके, ऐसी ही अन्य अनेक तरकीबों के सहारे एक छोटा-सा फिल्मी संसार खड़ा कर दिया। जिसे बालक किरन द्वारा प्रायः भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या के कटरा मोहल्ले में सजाया जाता था। कटरा मोहल्ले में स्थित अयोध्या नगरी में बच्चे एक-दूसरे के बगल में एक से बारह तक करवट बदलते रहते थे।
स्नातक की पढ़ाई के समय ही चित्रकला के प्रति आपके रुझान में क्रांतिकारी प्रगति हुई। अब आप एक से बढ़कर एक चित्र बनाने लगे, फलस्वरूप गोरखपुर विश्वविद्यालय से अच्छे अंकों के साथ स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद चित्रकला में स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए आपने आगरा विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया। वहां भी आप सर्वश्रेष्ठ छात्र रहे और प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। आपकी उत्कृष्ट योग्यता को देखते हुए आपको उसी गोरखपुर विश्वविद्यालय में कला विभाग में प्रोफेसर के पद पर सेवा करने का अवसर मिला, जहां से आपने कला की शिक्षा ली थी।
पंडित किरण प्रताप मिश्र जी को नौकरी मिल गई, फिर भी उनका मन हमेशा चिंतित रहता था। जिस विश्वविद्यालय में नौकरी पाकर लोग अपने आपको धन्य मानते हैं और ज्ञान-गंगा का स्रोत मानते हैं, वहां आपको न तो ठहराव महसूस होता था और न ही संतुष्टि। आपके मन में अपनी कला को विशाल क्षितिज तक ले जाने की भावना की रेलगाड़ी हमेशा चलती रहती थी। आप एक बेहतरीन चित्रकार होने के साथ-साथ अपने प्रोफेसर भी थे, लेकिन गीतों के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा था। गीतों की रचना और उनके उन्नयन के लिए मन में हमेशा मंथन चलता रहता था।
ईश्वर ने एक दिन अचानक आपके लक्ष्य की पूर्ति की अनुमति दे दी, गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य के दौरान आपको मुम्बई से गीत लेखन हेतु आमंत्रण प्राप्त हुआ। यह आमंत्रण मेरे मन में बिजली की तरह कौंध गया। घने अंधकार में जैसे सूर्य की किरणें दिखाई देने लगीं, फिर क्या था, मुम्बई चले गये और वहां पहुंचकर आपसे एक कव्वाली लिखने को कहा गया, जो आपने कभी नहीं लिखी थी। आरम्भ में यह थोड़ा कठिन अवश्य लगा, पर आपके लिए असंभव कार्य भी नहीं था। इस प्रकार "लेकिन" वह प्रथम फिल्म थी, जिससे आपने अपने फिल्मी जीवन की शुरुआत की। वर्ष 1983 में आपके लिखे गीत को प्रख्यात गायक महेन्द्र कपूर एवं अनुराधा पौडवाल ने स्वर दिया तथा संगीत निर्देशन श्री श्याम जी- घनश्याम जी ने किया। इसी दौरान ईश्वर ने मेरी मुलाकात श्री ललित नाग नामक एक सच्चे शुभचिंतक से कराई, जो फिल्म जगत के सर्वश्रेष्ठ एवं सम्मानित कला निर्देशक थे। उन्हें लगा कि इस व्यक्ति में गुण तो हैं, पर इसे परखने वालों को थोड़ा समय लगेगा। बहुत सोचने के बाद श्री ललित नाग जी ने आपसे फिल्म जगत की प्रतिस्पर्धा को भली-भांति समझने को कहा। धीरे-धीरे आपको मुंबई से कला निर्देशक के रूप में कई आमंत्रण मिलने लगे। वर्ष 1980 में प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर आप पूरी तरह से इस काम में जुट गए, धीरे-धीरे कला के बजाय आप गीतकार और नवगीतकार के रूप में मुंबई में पहचान बनाने लगे।
आज साहित्य जगत में सुप्रसिद्ध गीतकार और नवगीतकार के साथ-साथ आप एक प्रख्यात चित्रकार के रूप में भी ख्याति रखते हैं। देश-विदेश में आपकी चित्रकला की प्रदर्शनी लग चुकी है। अपने गीतों और भजनों के माध्यम से आपने फिल्म जगत में एक विशेष स्थान बनाया है। प्रख्यात फिल्म निर्माता और टेलीविजन धारावाहिक निर्माता श्री बी.आर. चोपड़ा द्वारा निर्मित प्रसिद्ध टीवी धारावाहिक महाभारत में लोगों ने आपके लेखन का कमाल एक गीत के रूप में सुना। उस धारावाहिक के अंतिम गीत “महाभारत सा युद्ध न हो” ने धूम मचा दी।
कई फिल्मों में आपके गीत प्रसिद्ध हुए हैं। आपकी असाधारण लेखन क्षमता ने आपको बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशकों का प्रिय बना दिया है। आपकी अद्भुत क्षमता कई धारावाहिकों में भी देखने को मिलती है। महाभारत, तिरुपति बालाजी, दयासागर, चलें गांव की ओर आदि टेलीविजन धारावाहिकों में आपके गीत काफी लोकप्रिय हुए हैं। इसके अलावा शिव पुराण, उपकार, देवर्षि नारद, जय गणेश, अभिनय, थोड़ी हकीकत थोड़ा फसाना, आदिशक्ति भगवती, निर्मला, स्वर्णिम क्षण, सुख और दुख, धर्म और हम, शक्ति, कसौटी और जिंदगी में आपने अपनी लेखनी का लोहा मनवाया है। घर-घर की कहानी, जब अपने हुए पराये, कुलवधू, कसम से, कयामत, कस्तूरी, इन सभी धारावाहिकों में पंडित किरण मिश्रा जी की तड़प को महसूस किया जा सकता है जो बचपन से ही ये सब करने के लिए बेचैन थीं।
'ये रिश्ता क्या कहलाता है’ और ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ ऐसे सीरियल हैं जिनके आने का घरों में इंतजार होता है। इसी तरह हमारी महाभारत की कहानी, मितवा, श्रद्धा, झांसी की रानी, भगवान परशुराम, शनिदेव की महिमा, विक्रम बेताल, माता-पिता के चरणों में स्वर्ग, विदाई, सूर्य पुराण, शोभा सोमनाथ, जय जगत जननी मां दुर्गा, जय जय बजरंगबली जैसे शुभ विवाह में भी आप एक सशक्त संकेत के रूप में सामने आते हैं।
'अगले जन्म फिर बिटिया ही कीजो' बहुत लोकप्रिय धारावाहिक है। माता की चौकी, बुद्धा, सर्वशक्तिमान, सिया के राम, नागिन, मेरे अंगने में, संतोषी माता, भक्ति में शक्ति, कवच समेत कई धारावाहिकों में अयोध्या की माटी से निकला सोना चमकता है।
अपनी जादुई आवाज से लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाले और देश के गजल सम्राट कहे जाने वाले परम श्रद्धेय स्वर्गीय जगजीत सिंह जी की अधिकांश गजलें और अन्य रचनाएं आपके द्वारा लिखी गई हैं। श्री जगजीत सिंह जी के पांच एल्बम भी आपके द्वारा लिखे गए हैं।
बालाजी टेलीफिल्म्स के अधिकांश धारावाहिकों में शीर्षक गीत आपके द्वारा ही लिखे गए हैं। फिल्म जगत में शायद ही कोई ऐसा नामचीन संगीतकार हो जिसके साथ आपने काम न किया हो। क्या कभी किसी ने पंडित किरण मिश्रा जी के बारे में सोचा था, जिन्होंने मोहल्ले के बच्चों को इकट्ठा करके बचपन में ही फिल्में भी दिखाई थीं, कि आज दिखाए जा रहे धारावाहिकों के अधिकांश प्रसिद्ध गीत आपकी कलम से निकलेंगे और घर-घर में चर्चित हो जाएंगे। आपको तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा के कर कमलों से सम्मानित किया गया था, इसके अलावा भी कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तिओं के माध्यम से आपको अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं।
मृगेन्द्र राज पाण्डेय